Kabhi Ghamand Na Kare Swami Vivekananda Hindi Kahani : तो आज हम एक ऐसी दिलचस्प कहानी लेकर आए हैं आप लोगों के लिए जिसको सुनकर आपको काफी अच्छा भी लगेगा और उसी के साथ साथ आप यह बात भी जान जाएंगे कि हमें अपने ज्ञान पर कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए तो आज की इस कहानी संग्रह में हम आप लोगों के लिए स्वामी विवेकानंद और एक साधु की कहानी को लेकर आए हैं
Swami Vivekananda के बारे में तो हम सभी जानते हैं वह एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके बारे में ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व भर में बहुत अच्छी चीजें कही जाती हैं और उन्हें माना जाता है कि वह अपने जीवन में काफी सुलझे हुए व्यक्ति थे और उनकी कुछ चीजें तो ऐसी है जो आज भी आज के बच्चों को प्रेरणा देती है बिना किसी देरी के शुरूआत करते हैं कहानी के।
बात उस समय की है कि जब Swami Vivekananda शिकागो धर्म सम्मेलन से अपनी व्याख्यान करके लौटे थे और उनके भाषण की सराहना नासिर भारत में हुई थी बल्कि पूरे विश्व में उनकी वाहवाही हो रही थी और भारत में तो बिल्कुल इस तरह से प्रसिद्ध हो चुके थे कि मानो जैसे भगवान सैनी उतर आए हो Swami Vivekananda के धर्म सम्मेलन के उद्घाटन पर लोग काफी प्रभावित हैं और उनसे मिलना चाहते थे और उनकी वाहवाही करते थे Swami Vivekanandaउस वक्त भारत लौटने के बाद हिमालय के कुछ क्षेत्रों में भ्रमण कर रहे थे क्योंकि उनको धर्म का प्रचार करना बहुत पसंद था
तो जैसे ही वह माल्या के आसपास के एक ऐसी जगह पर भ्रमण कर रहे थे जहां से एक नदी निकल रही थी जिसको पार करने के लिए आपको नाव में बैठना पड़ता है Swami Vivekananda जैसे ही किनारे तक पहुंचते हैं उनके देखते ही देखते नाम किनारा छोड़ चुकी थी और स्वामी विवेकानंद उस नाव में नहीं बैठ पाए तो इसी की वजह से स्वामी विवेकानंद ने फैसला किया कि वह नदी किनारे पर बैठकर ही नाव के आने का इंतजार करेंगे और नाम के आने का इंतजार करते करते Swami Vivekananda वहीं बैठ गए इतने में ही एक बहुत बड़े तपस्वी साधु वहां से गुजर रहे थे उन्होंने स्वामी विवेकानंद को
अकेले नदी किनारे बैठे देख कर उनकी ओर जाना सही समझा और स्वामी विवेकानंद से उन्होंने सवाल किया कि आप वहां नदी किनारे अकेले क्यों बैठे हैं Swami Vivekananda ने कहा कि मैं अकेला बैठा हूं क्योंकि मैं नदी पार करने के लिए इंतजार कर रहा हूं उनसे उनका नाम पूछा और स्वामी विवेकानंद ने बताया कि मैं Swami Vivekananda को जानते थे और उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि तुम वही Swami Vivekananda हो जिसके पूरे भारतवर्ष में फैले हुए हैं और तुम वही हो ऐसा लगता है
कि धर्म के बारे में तुम बहुत ज्यादा ज्ञान जानते हो और घमंड में आते हुए तस्वीरें विवेकानंद की आलोचना करनी शुरू कर दी उन्होंने कहा कि तुम अपने आप को बहुत बड़े स्वामी समझते हो पर ऐसा बिल्कुल भी सत्य नहीं है और इसके बाद उन्होंने घमंड दिखाते हुए पानी पर चलना शुरू कर दिया और स्वामी विवेकानंद करते हुए कहा कि क्या तुम इस पानी पर चल सकते हो और यह एक बहुत ही अद्भुत शक्ति है जिसकी मैं बिल्कुल सराहना करता हूं मैं आपसे एक सवाल पूछ सकता हूं घमंड में आते
हुए कहा कि हां तुम मुझसे सवाल पूछो मैं सारे सवालों के जवाब तो मैं दे सकता हूंस्वामी विवेकानंद ने बड़ी विनम्रता से यह सवाल पूछा कि आपको यह शक्ति प्राप्त करने में कितना वक्त लगा स्वामी विवेकानंद के इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मुझे इस शक्ति को पाने में 20 साल की कठोर तपस्या लगी है तुम क्या जानो इसके बारे में तू स्वामी विवेकानंद ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि बेशक आप की है अद्भुत शक्ति बहुत सराहनीय है पर आप जानते हैं कि 20 साल में
आप किसी निर्णय व्यक्ति की किसी गरीब व्यक्ति की या किसी ऐसे इंसान की मदद करने में आकर निकालते तो आज कितने लोगों का भला होता आपने व्यर्थ में ही ऐसी शक्ति पर तपस्या करके मत जाया किया जिसका काम आज के दौर में नहीं है आप 10 मिनट में नाव में बैठकर नदी को पार कर सकते हैं।
स्वीकृत तपस्वी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने स्वीकृत किया कि वह घमंड में आ गए थे स्वामी विवेकानंद के बुद्धि कौशल को देखकर उन्होंने उनकी सराहना की और उनसे गले मिलकर तपस्वी आगे चल दिए इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपने ज्ञान पर अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि आपका ज्ञान आप अर्जित करते हैं तो वह किसी ना किसी अच्छे काम में ही उसका इस्तेमाल कीजिए ना की किसी को नीचा दिखाने में।
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यदि हम बात करें इस कहानी की शिक्षा की तो इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने जीवन में बहुत ज्यादा ज्ञान अर्जित करना चाहिए पर कभी भी उसका घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि घमंड करें यदि हमने अपने ज्ञान के ऊपर तो वह हमारे जीवन को पूरी तरह से नष्ट कर देता है क्योंकि हमें अपने ज्ञान पर अभिमान यदि होता है तो हम उस ज्ञान का सदुपयोग नहीं कर पाते और हम उसे दूसरों को नीचा दिखाने में ही इस्तेमाल करते हैं और कहीं ना कहीं वह ज्ञान एक वक्त पर आकर इसी वजह से नष्ट हो जाता है।