Mahila Pradhan Ki Prernadhayak Hindi Kahani-महिला ग्राम प्रधान (सरपंच) की प्रेरणादायक हिन्दी कहानी
1947 के बाद जब ब्रिटिश ईस्ट इन्डिया कम्पनी ने एक संगठन बनाया तब से गाँव में पुरुष गाँव का सरपंच चुना जाता था । उस से महिलाओं को हक नहीं था कि वह सरपंच बने महिलाओं को घर में काम करने वाली एक नौकरानी समझा जाता था । घर का काम करो और घर में रहो, बस इतना काम हैं ।
महिलाओं को घर का काम करना, बच्चों को जन्म देना, बच्चों का पालन पोषण करना, खेतों में काम करना, चुप रहना, उनके अपने क्या हक हैं? उनको पता ही नहीं था । संयुक्त परिवार में रहती सारा दिन काम में बीत जाता था । सुबह से शाम हो जाती थी लेकिन काम खत्म नहीं हो पाता था ।
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1990 के बाद पहली बार महिलाओं के लिए सरपंच की सीट निकाली गई । महिलाओं को चुनाव के मैदान में उतारा गया जब महिला सरपंच बनी तब भी वह घुँघट करती थी । उन्हें हस्ताक्षर भी करने हो तो घुँघट में करें । कई सरपंच अनपढ़ होती थी, उन्हें पढ़ना और लिखना नहीं आता था ।
जहाँ कहा अंगूठा लगा दिया । उसे पता ही नहीं चलता था कि इसमें क्या लिखा हैं । सन 2000 के बाद तय किया गया कि शिक्षित महिला ही सरपंच और पंच का चुनाव लड़ सकेंगी । महिलाओं को थोड़ी सी आजादी मिलने लगी थी । थोड़ा थोड़ा अपने अधिकार के बारे में जानने लगी थी ।
बाहर निकलना शुरु किया और घुँघट भी हटा दिया था । सन 2005 में एक ऐसी सरपंच बने जिसने महिलाओं की किस्मत ही बदल दी । 2005 में गाँव के अंदर स्वयं सहायता समूह बनाया । (S.H.G.I) महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताया गया उनको समझाया गया कि उनके अधिकार क्या हैं?
शिक्षा का अधिकार, समानता का अधिकार, नागरिकता का अधिकार, खुद की रक्षा करने के गुर सिखाए गये लड़कियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी जो महिला घर में अत्याचार सहती थी या उनके आदमी शराब पीकर उनको पीटते थे । उनको कविता के बहाने से समझाया गया ।
“मार्ग ने दिया जन्म हमें, सूरज की किरणों ने जगाया हैं ।
आभा ने दिया सहारा हमें, सुधा ने समझाया हैं हमें ।।
बोल बसन्ती दिखायी फिल्म हमें-2 ।
अधिकारों के बारे में बताया हैं ।।
जागो जागो तुम महिलाओं-2 ।
नया सवेरा आया हैं ।।
यूँ अत्याचार ना सहकर, तुम-2 बैठ जाओ ।
आगे कदम बढ़ाओ तुम ।।
मार्ग से निकलती हुई छोटी सी, किरण ने संदेश फैलाया हैं ।
कानून तुम्हारे साथ हैं, आगे कदम बढ़ाओ तुम-2 ।।”
अब उस गाँव की महिलाएँ किसी के भरोसे नहीं अपना सारा काम खुद करती और घुँघट से आजादी मिल गई । उस महिला सरपंच ने महिलाओं को तो अधिकार के बारे में बता दिया । अधिकार दिला भी दिये लेकिन खुद के अधिकारों के बारे में भूल गई । महिलाओं को गाँव में आजादी दिला दी और खुद गुलाम बन कर रह गई । महिलाओं पर हुए अत्याचार के लिए लड़ाई लड़ी और खुद अत्याचार सहती रही ।
उसे दबाया गया धमकाया गया कभी-कभी मार भी सहती थी । उसे घुँघट में रहने के लिए बोला गया कि तुम घुँघट में हस्ताक्षर करोगी । तुम्हें जितना बोला जाये उतना ही करना उसकी सास और पति हमेशा उसके साथ झगड़ा करते थे । कभी कभी तो सास के कहने पर उसका पति उसे मारता था । सरपंच होते हुए भी वह इतने अत्याचार सहती रही और कुछ न कर सकी अत्याचार सहना उसकी मजबूरी बन गया था ।
उसे तलाक की धमकी देते थे कि तुझे तलाक दे दूंगा छोड़ दूंगा । वह इस खोखले समाज के डर से चूप रहती थी । उसके दी । उसके दो छोटे बच्चे थे किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया । ना माईके वालो ने, ना ससुराल वालों ने वह अकेली ही लड़ती रही और उनके अत्याचार सहती रही ।
क्या यहीं प्रकृति का नियम था पुरुष जो चाहे कर सकता पर महिला अपने अधिकार के लिए भी आवाज नहीं उठा सकती । महिला चाहे सरपंच हो विधायक हो या फिर वह प्रधानमन्त्री महिलाओं को हमेशा दबाया गया ।
उसे रसोई के काम ही गिनाए गये । उसे बताया गया कि तू रसोई के लिए बनी हैं, घर में खाना बना, घर का काम कर यही तेरी पहचान हैं । सन 2009 जुलाई का महीना था तब उसकी माँ की मृत्यु हो गई । महिला सरपंच टूट गई उसे लगा कि अब उसकी जिन्दगी में अंधेरा हो गया हैं ।
सब कुछ खत्म हो गया लेकिन कुछ समय बीत जाने के बाद जब उसे याद आया तो वह घर और बाहर दोनों का काम संभालने लगी । कई बार उसे मीटिंग भी करनी पड़ी अधिकारियों के साथ । उसकी सास और पति फिर पीछे पड़ गए उसे अपशब्द बोलने लगे ।
कई तरह के इल्जाम भी लगाये गये । यहां तक कि उसे बाजारू औरत भी बोला गया, अलग-अलग तरह के इल्जाम लगाये गये । लेकिन महिला सरपंच ने हार नहीं मानी और चलती रही । फिर उसे ना समाज का डर था ना पति का, क्योंकि वह एक निडर और साहसी महिला थी ।
उसने कभी कुछ गलत नहीं किया था तो उसे डर किस बात का था । वह महिला सरपंच होते हुए भी लड़ती रही और आज तक लड़ रही हैं, हार नहीं मानी और ना ही अपने बच्चों को हारने दिया ।
हमेशा कहती रहती थी कि “रात में देर से सोना सुबह जल्दी उठती हूँ मैं । क्या खो गया हैं मेरा? क्या पाना चाहती हूँ मैं? कभी तनाव से कभी टकराव से क्यों लड़ती झगड़ती हूँ मैं? क्या खो गया हैं मेरा? क्या पाना चाहती हूँ मैं? उजाले की ओर चली थी मैं ।
अंधेरे की ओर धकेल दिया ना जिन्दगी का पता कब होगा सवेरा? इसी कश्मकश में बीत गई जिन्दगी । कब क्या हाथ लगेगा मेरे? क्या खो गया मेरा? क्या पाना चाहती थी मैं? उस सरपंच ने जीवन की इतनी लड़ाई लड़ने के बाद अपना खोया सम्मान वापस पा लिया ।
पहले अपने बच्चों को कामयाब बनाया और फिर अपने आप को एक स्कूल में शिक्षिका के रूप में नौकरी की । उनके संघर्ष को देखकर गाँव की महिलाओं ने मिलकर उनको दोबारा सरपंच बनाने का निर्णय लिया । गाँव की महिलाओं अपने साथ खड़ा देखकर सरपंच का हौसला ओर भी मजबूत हो गया और इस प्रकार से उन्हें अपना खोया सम्मान वापस मिल गया ।
Moral of the Story
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती हैं कि जीवन में कितनी भी कठिनाईयां आए हमें कभी घबराना नहीं चाहिए । उनका सामना करना चाहिए ।
Final words for Mahila Pradhan Ki Prernadhayak Hindi Kahani
हम आशा करते हियाँ कि आप सभी को यह आर्टिकल ‘Mahila Pradhan Ki Prernadhayak Hindi Kahani’ पसंद आया होगा । अपना कीमती समय देकर यह आर्टिकल महिला ग्राम प्रधान (सरपंच) की प्रेरणादायक हिन्दी कहानी पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद ।
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