Duryodhana Karna Ki Mitra Hindi Kahani : तो आज के इस कहानी संग्रह में हम आप लोगों के लिए एक ऐसी दिलचस्प कहानी लेकर आए हैं जिसमें मित्रता की मिसाल कायम की है जी हां दुर्योधन और कर्ण की मित्रता की मिसाल तो देनी ही चाहिए क्योंकि उन दोनों की मित्रता बहुत ही अच्छी थी बेशक दोनों गलत राह पर थे पर फिर भी मित्रता की जब भी बात आती है तो कर्ण और दुर्योधन की मित्रता की बात भी कहीं ना कहीं चढ़ती है
Duryodhana Karna Ki Mitra Hindi Kahani
तो आज के इस कहानी संग्रह आप लोगों के लिए दुर्योधन और कर्ण की मित्रता की एक कहानी लेकर आए हैं और यह हमें यह दर्शाती है कि महाभारत की कहानी सिर्फ दुश्मनी ही नहीं है बल्कि इसमें दोस्ती और प्यार के किस्से भी शामिल है आपको महाभारत के दूसरे पहलू की ओर ले चलते हैं इस कहानी के माध्यम से और आप लोगों को बताते हैं कि कैसे महाभारत की कहानी प्यार और दोस्ती को भी दर्शाती है तो चलिए बिना किसी देरी के कहानी की शुरुआत करते हैं।
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तो यह कहानी है दुर्योधन और कर्ण की दुर्योधन और कर्ण बहुत ही अच्छे मित्र थे तो एक बार की बात है जब द्रोणाचार्य ने एक प्रतिस्पर्धा रखी थी सारे राज्य के राजकुमारों के बीच में उस प्रतिस्पर्धा में अर्जुन ने बहुत सारे करतब दिखाए थे और उन्हें यह पता था कि अर्जुन से अच्छे धनुर्धर और करतब दिखाने वाले व्यक्ति सिर्फ एक ही हैं जिनका नाम है प्राण दुर्योधन ने इस बात का अंदेशा पहले ही लगा लिया था
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और उन्होंने उनको वह करतब करने के लिए बुलाया दुर्योधन जानते थे कि अर्जुन से अच्छे धनुर्धर कौन है और यदि मकान को बुलाएंगे तो वह अपने पास जीत का मौका रख सकते हैं पर इस बात को देखते हुए द्रोणाचार्य ने इस बात से ना खुशी जाहिर करते हुए कहा कि कि वह किसी भी तरह से इस प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के लिए नहीं है क्योंकि वह यह इसलिए नहीं कर सकते क्योंकि कौन राज्य में विराजा नहीं है इसी की वजह से दुर्योधन ने उन्हें अपना अंग देश दे दिया
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और उन्हें उसका राजा बनाया इसी की वजह से वह उसके बाद में दुर्योधन के अंगरक्षक कहलाए और उन्होंने उस प्रतिस्पर्धा में भाग लिया और उसी के बाद में उन्होंने अर्जुन से भी ज्यादा अच्छे करतब दिखाए और वह प्रतिस्पर्धा में काफी वाहवाही लूटी हम सभी जानते हैं कि दुर्योधन और कर्ण की मित्रता के चर्चे सब जगह है और आज भी यह बात से कोई भी दो राय नहीं रखता कि कारण दुर्योधन के लिए हमेशा मददगार साबित हुए और इमानदार साथी थे
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और उन्होंने दुर्योधन के प्रति अपना फर्ज हमेशा निभाया बहुत भीड़ थी और वह इतने अच्छे योद्धा थे वह हमेशा दुर्योधन को इस बात से बचाते थे कि वह कभी किसी गलत राह में ना चले क्योंकि उनके मामा शकुनि जब भी वह कहते थे पांडवों को धोखा देने के लिए तो कारण ही उन्हें कह कर देख करते थे कि उन्हें नहीं करना चाहिए करण हमेशा दुर्योधन को समझाते थे
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कि उन्हें युद्ध भूमि में अपने सामर्थ्य को प्रदर्शित करना चाहिए ना कि पीठ पीछे वार करना चाहिए एक बार की बात है दुर्योधन चित्रांगद की राजकुमारी से विवाह करना चाहते थे और राजकुमारी ने उन्हें स्वयंवर में आशिक वार कर दिया था इसी की वजह से करो ध्वज दुर्योधन राजाओं को परास्त करते हुए राजकुमारी को जबरदस्ती उठा लाए
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और महाभारत में बहुत बार बहुत जगहों पर करण ने इस बात को साबित किया है कि वह दुर्योधन के वफादार हैं और वह बहुत ही अच्छे योद्धा भी इसी के साथ-साथ महाभारत में कर्ण की बहादुरी और दानवीरता के कायल श्री कृष्ण भगवान भी थे।
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इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें जिस भी दोस्त के साथ में मित्रता हम करते हैं उसके साथ में वफादार रहना चाहिए और हमें कभी भी किसी के पीठ में छुरा नहीं घूमना चाहिए क्योंकि अंत में वह हमारे ही कर्मों को खराब करता है और हमारी परेशानियों का कारण बनता है।