Guru Aur Shishya Ki Hindi Kahani:- इस आर्टिक्ल में बताया गया है एक गुरु और शिष्य की कहानी के विषय में । यह बच्चों के लिए प्रेरणादायक हिन्दी कहानी है । एक बार की बात है गुरू जी, अपने शिष्यों के साथ मैदान में थे। उसने अपने सभी शिष्यों से पूछा कि तुम क्या सिखना चाहते हो?
विद्या, अस्त्र -शस्त्र चलाना। गुरु जी के सब शिष्यों ने कहा कि आज हम मैदान में दौड़ लगाएंगे। तब गुरु जी ने कुछ समझा और 350मी की दौड़ का एक लक्ष्य रखा । सबमे एक शिष्य अलग था उस शिष्य ने सबसे पहले लक्ष्य पार किया गुरु जी ने देखा वह शिष्य तेज प्रतापी गुणवान समझदार है। एक दिन यह बहुत बड़ा राजा बनेगा।
गुरु जी ने उस बालक को सबसे पीछे छे खड़ा कर दिया । दूसरे बालक को इनाम के लिये घोषित कर दिया, उसने पूछा- गुरु जी में पीछे क्यों जाऊँ मैं तो सबसे आगे था मुझे ईनाम क्यों नहीं दिया। इस इनाम का हकदार में हूं। इनाम गुरु जी ने बोला, तुझे नही मिलेगा तू जाकर पीछे हो जा। गुरु जी बालक के कोरे सब जानते थे अगर इसे ईनाम दिया तो आगे दोड़ नहीं पायेगा।
गुरु, जी को अच्छे शिष्य की तलास थी। अच्छा शिष्य अब मिल गया था ।कुछ दिन बाद गुरु जी ने एक लक्ष्य फिर रखा इस बार कुछ अलग था । इस बार लक्ष्य एक ऊंचे पर्वत का था। जिसकी ऊंचाई लगभग 450 से 550 फिट की थी । पर्वत का रास्ता पथरीला और कांटेदार झाड़ी का था। सब शिष्यों ने साफ सुधरा रास्ता चुना , एक शिष्य ने पथरीला और झाड़ियों वाला रास्ता चुना ।
जो की उबड खाबड था वह उस रास्ते को सबसे पहले पार कर गया। फिर वह लाईन मे सबसे आगे खड़ा हो गया । गुरु जी ने फिर उसे पीछे खड़े होने के लिए कहा। शिष्य ने पूछा कि गुरु जी मै सबसे आगे था , फिर में सबसे पहले मैदान में आया । लक्ष्य भी बड़ा क्या नही था । फिर में पीछे क्यों जाऊँ और मेरा आप ने ईनाम बालक समझ नही दिया। गुरु जी आप क्या चाहते हैं बालक ने गुस्से में लाल होकर गुरु जी को कहा।
गुरुजी ने कहा कि बालक तुझे ईनाम नही मिलेगा अभी तू इसका हकदार नहीं है। शिष्य आश्चर्य मे ढूब गया वह समझ नहीं पा रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा है? में आगे दोड़ता हूँ गुरु जो पीछे खड़ा कर देते हैं।मुझे ‘ईनाम भी नहीं देते। अब सभी शिष्य 16 वर्ष की आयु से ऊपर हो चुके थे। एक दिन गुरु जी सभी शिष्यों को मैदान मे इकट्ठा किया और बोले कि तुम सब अपनी-अपनी ईच्छा बताओ कि बड़े होकर क्या बनना चाहते हो ।
किसी ने कहा मै राजा बनना चाहता हूँ ,राजा बनकर राज करुगा सुन्दर-सुन्दर रानीयो के पास जाकर सेवा कराऊंगा। किसी ने कहा स्वर्ग देखना चाहता हूँ। वहां पर अपसरा होती है? इन सबकी बात सुनने के बाद पीछे खडे शिष्य से पूछा कि तुम क्या बनना चाहते हो। तब शिष्य ने कहा मैं इन सबको हराना चाहता हूँ । कुछ समय पश्चात गुरू, जी फिर एक लक्ष्य रख दिया गुरु जी ने सभी को इक्कठे खड़े थे, और शिष्य अलग खड़ा था उसका चेहरे पर चमक थी और न ही घबराहट थी।
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बल्कि वह मुस्करा रहा था मैने तो उन सब को हराना है। इन सब पर राज करना है। गुरु जी ने आदेश दिया कि जंगल में बहुत सारे पागल हाथी और बहुत सारे आवारा कुत्ते है उन्हें शाँत करना है।सभी ने अलग अलग भागना गुरु ने बोला “कि न तो हाथीयो को कुछ होना चाहिए न ही कुतों को और जगंल मे भी नुकसान नहीं होना चाहिए। जो शिष्य राजा बनना चाहते थे।
उन्होने अपने साथ अपनी सेना को लिया और जंगल प्रस्थान किया कि और प्रस्थान किया। सेना ने तीर और भालो से हाथी को भगाने का प्रयास किया। तीर से हाथी घायल हो गये जंगल मे तोड़ फोड़, मचा थी।
हाथीयो से डर कर राजा और सेना वापस शिष्य वापिस वोट आए तो गुरु जी अपने प्रिय शिष्य को आदेश दिया कि जाओ और जंगल में अब पागल हाथिऊ और कुत्तों पर काबू पाओ । शिष्य ने गुरु जी के आदेश पर जंगल की और प्रस्थान किया उसने बड़ी सूज बुझ से सफलता हासिल की।
उसने जंगल के चारो ओर आग लगा दी जिससे डर कर हाथी जब जंगल छोड़ कर भाग गए।
उसने एक मास का टुकड़ा लिया और जंगल से बाहर फेंक दिया कुत्ते बाहर चले गये। शिष्य गुरुकुल मे वापस चला गया तब गुरु जी ने उसे राजा घोषित किया और बोला कि असली राजा वह होता है जो प्रजा की रक्षा करे और किसी को नुकसान भी नहीं हो?
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FAQs Related to Guru Aur Shishya Ki Hindi Kahani
प्राचीन काल में गुरु शिष्य संबंध कैसे थे ?
प्राचीन काल में गुरु शिष्य के संबंध बहुत ही गहरे होते थे । इन सम्बन्धों का आधार गुरु का ज्ञान, चेतना, लगन और मेहनत था । शिष्य अपने समर्पण, श्रद्धा और सेवा के द्वारा निश्वार्थ होकर ज्ञान लेता था । इसीलिए गुरु भी अपनी पूरी क्षमता के साथ अपने शिष्यों को पूर्ण ज्ञान देता था ।
गुरु शिष्य संबंध से आप क्या समझते हैं ?
गुरु शिष्य संबंध श्रद्धा,समर्पण, सेवा,निस्वार्थ भाव, ज्ञान, चेतना और जागरण का होता है ।
कहानी गुरु और शिष्य में गुरु क्या चाहते हैं?
गुरु अपने शिष्यों परीक्षा लेकर यह देखना चाहता है कि कोनसा शिष्य सबसे श्रेष्ठ है ।
गुरु पुर्णिमा की कहानी क्या है?
गुरु पुर्णिमा की यह कहानी महर्षि वेदव्याश के जन्म दिवस से जुड़ी है । महर्षि वेदव्याश के जन्म का जन्म हजारों साल पहले आषाढ़ सुक्ल पुर्णिमा को हुआ था । इसलिए हर साल आषाढ़ सुक्ल पुर्णिमा को गुरु पुर्णिमा मनाई जाती है ।
Guru Aur Shishya Ki Hindi Kahani Se Hame Kya Shikshya Mili:-
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा क्या शिक्षा मिली? हमें शिक्षा मिली कि लक्ष्य कितना भी बड़ा हो हमें डरना नहीं चाहिए ?
हम आशा करते हैं कि आपको यह ‘गुरु और शिष्य प्रेरणादायक हिन्दी कहानी’ पसंद आई होगी अपना कीमती समय देकर इससे पढ़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद ।
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