Paramhans Swami Nikhileshwaranand Kon Hain:-
परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी महाराज संसार के परम श्रेष्ठ सद्गुरुओं में से एक हैं। जोकि योगिराज परमहंस स्वामी सच्चिदायनन्द जी महाराज के प्रिय शिष्य हैं। इनका सांसरिक नाम डॉ नारायण दत्त श्रीमली है। 18 साल सन्यास में रहने के बाद जब इनके गुरु ने आदेश दिया तो इनकों संसार में पुनः ज्ञान के जागरण के लिए आना पड़ा। ये मंत्र तंत्र यंत्र के पूर्ण ज्ञाता हैं। सभी सिद्धियाँ इसके गले में हार की तरह रहती हैं।
स्वामी निखिलेश्वरानंद जी किसी परिचाय के मोहताज नहीं हैं। सारा संसार इनको जनता है। इनका शिष्य होना अपने आप में जीवन के सभी क्षेत्रों में पूर्णता प्राप्त करना है। हिमालय का कण कण इनके चरणों को अच्छी तरह जनता है। योगियों में इनका नाम बड़े ही आदर व सम्मान के साथ लिए जाता है। बड़े से बड़ा साधू, सन्यासी, साधक और योगी इनका शिष्य बनना चाहता है ताकि वह अपनी आध्यात्मिक यात्रा को पूर्णता दे सके। ये योगियों में श्रेष्ठ हैं।
Paramhans Swami Nikhileshwaranand Biography:-
स्वामी निखिलेश्वरानंद जी (डॉ नारायण दत्त श्रीमली) जन्म 21 अप्रैल 1931 में जोधपुर के खरंटीयाँ गाँव, राजस्थान में हुआ । बचपन से ही ये बहुत ही वीर और साहसी थे । बहुत ही कम आयु में इन्होंने वेद पुराण शास्त्र और ज्योतिष में गहन अध्ययन कर लिया था । अधिकतर मंत्र इनको कंठस्थ थे । अध्यात्मिकता में इनकी रुचि बचपन से ही रही है । 12 वर्ष की कम आयु में इनका विवाह रूप देवी से हो गया । पहले इन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और फिर अध्यापन का कार्य किया । अपनी परंतु अध्यात्मिकता में इनकी रुचि के कारण इन्होंने जल्द ही सन्यास ले लिए और ज्ञान की खोज मे निकल पड़े।
अपनी अध्यात्मिकता यात्रा के दौरान इन्होंने अनेक गुरुओं से ज्ञान लिए और वर्षों तक हिमालय में साधना की। अपने पूर्व जन्मों में इन्होंने अनेक प्रकार की साधनाएं की थी जिनके फलस्वरूप इनको योगिराज परमहंस स्वामी सच्चिदायनन्द जी महाराज के प्रिय शिष्य बनने का सोभाग्य मिला। अभी तक के मेरे द्वारा किए गए अध्ययन से मुझे ये पता चला है कि परमहंस स्वामी सच्चिदायनन्द जी जोकि हजारों हजारों वर्षों की आयु प्राप्त हैं के द्वारा ही सिद्धाश्रम की स्थापना की गई । और इन्होंने आज तक केवल तीन ही शिष्य बनाए हैं। जिनमें से एक Paramhans Swami Nikhileshwaranand Ji हैं ।
इसीलिए सद्गुरु परमहंस स्वामी सच्चिदायनन्द जी की परीक्षा कड़ी होने वाली थी । स्वामी निखिलेश्वरानंद जी को अपना शिष्य बनाने से पहले एक अनोखी परीक्षा ली जिसका विवरण मुझे स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के एक ग्रंथ से मिली । Swami Nikhileshwaranand को एक टोकरी दे दी गई जिसमे पानी भर कर लाना था। परीक्षा के लिए इन्होंने ऐसा ही किया । ये टोकरी को ले कर कुएं पर गए और रस्सी के द्वारा टोकरी में पानी भरने की कोशिश की । जैसे ही टोकरी को पानी भरकर ऊपर खींचा पानी उसमे से निकाल जाता था । इसी प्रकार काफी समय बीत गया ।
फिर इनके मन में आया की जब टोकरी में पानी भर ही नहीं सकता था तो मुझे टोकरी में पानी लाने के लिए क्यों कहा गया । लेकिन इनको ये पता था कि गुरु ने कहा है तो पक्का इसमे पानी आएगा । बार बार इसी प्रक्रिया को दोहराते रहे और हार नहीं मानी। पानी में बार बार डाकने के कारण टोकरी की लकड़ी फूल गई और इसी कारण टोकरी के बीच के छेद भर गए और अंत में टोकरी में पानी भर गया । इस प्रकार स्वामी निखिलेश्वरानंद जी अपनी परीक्षा में सफल हुए ।
अध्यात्मिक नाम | परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी महाराज |
सांसारिक नाम | डॉ नारायण दत्त श्रीमली |
जन्म दिनाँक | 21 अप्रैल 1931 |
जन्म स्थान | गाँव खरंटीयाँ, जोधपुर राजस्थान |
शिक्षा | PHD हिन्दी |
उपाधि | डॉक्टर, मंत्र शिरोमणि, महा महापाध्याय, समाज शिरोमणि और इसी प्रकार की अनेक अन्य उपाधि |
प्रमुख ग्रंथ | 156 ग्रंथ इनके द्वारा लिखे गए। जिनमे प्रमुख हैं – तांत्रिक सिद्धियां, बगलामुखी साधना, दीक्षा संस्कार, वृहद हस्तरेखा शास्त्र, स्वर्ण तंत्र और सम्मोहन का रहस्य |
सिद्धाश्रम गमन दिनाँक | 3 जुलाई 1998 |
पिता का नाम | पंडित मुल्तान चन्द्र श्रीमाली |
माता का नाम | रूप देवी |
पत्नी का नाम | भगवती देवी |
सन्तान | 3 बेटे (नन्द किशोर श्रीमली, कैलाश चंद श्रीमली और अरविन्द श्रीमली ) व 1 बेटी |
संस्था या आश्रम का नाम | अन्तरराष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार |
सुप्रसिद्ध मेगज़ीन | मंत्र तंत्र यंत्र विज्ञान |
Final Words
मैंने इस आर्टिकल को लिखने के लिए Paramhans Swami Nikhileshwaranand से जुड़ी अनेक किताबें पढ़ीं । मैं आशा करता हूँ कि आप सभी को यह आर्टिकल पसंद आया होगा । अपना किमती समय देकर यह आर्टिकल पढ़ने के लिए आप सभी का दिल से धन्यवाद ।